कभी -कभी में सोचता हुँ
ये सब क्या हो रहा हे
जो हो रहा हे सो क्यों हो रहा हे।
क्या जीवन -मरण हि एक सत्य हे ?
मेरा वज़ूद , मेरा सबूत ,
सब एक दिखावा हे ?
मेरा सम्बन्ध ,मेरा रिश्ता
सब एक झूठा वादा हे। ..
कभी -कभी मे सोचता हुँ
मै काल्पनिक हक़ीक़त हुँ ,
इक्षाओं और आकांक्षाओंका,
पूरा करनेवाला वसीहत हुँ।
क्या हुँ में ?
क्या में एक वहम हुँ
या हुँ सिर्फ सपना
इस अपवादित संसारमे
नहीं हे कुछ विपना
कौन हुँ मैं ?
मैं और मेरा ये सबूत , कुछ नहीं हे
ये झूठा दिखावा ये वज़ूद कुछ नहीं हे
सब महस एक कल्पना हे....
सब काल्पनिक हे .........
A Poem by,
Abhijeet Chaudhary
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