मधेश Vs मिथिलाका विवाद अपने आपमे आधारहीन है । मिथिला मधेस राष्ट्र (Nation) का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण एक अंश है । ये थारूहट, अवध, भोजपुरा और कोचिला जैसा ही मधेसी राष्ट्रियताका एक अभिन्न उप-राष्ट्रियता (Sub-Natinality) है । मधेस अपने आपमे मध्यदेशीय वा मझ्झिमदेशीय एक सभ्यता है और मिथिला इसका एक भाषा -सांस्कृतिक इकाई । आधुनिक नेपाल राज्य के स्थापना के समय से ही सम्पुर्ण मधेस नेपालका औपिनिवेसिक सत्ता के उत्पिडनका शिकार रहते आये है । इससे मधेसका अन्य सांस्कृतिक इकाई कि तरह मिथिला भी उत्पीडनक शिकार रहा है । विगत लम्बा समय से मधेस इस राष्ट्रिय उत्पिडन के खिलाप प्रतिरोध करते आरहे है और पिच्छ्ले समयका मधेस आन्दोलनों से मधेस नेपाल मे एक जबर्जस्त राजनीतिक इकाई और प्रतिरोधात्मक शक्ति रुपमे स्थापित हुवा है । इन प्रतिरोधात्मक आन्दोलनों मे अन्य भाषा सांस्कृतिक इकाई कि तरह मिथिलाका भी अतुलनीय योगदान रहा है । मगर इन आन्दोलनों मे मधेस को राष्ट्रिय उत्पीडन से मुक्ति और आन्तरिक उपनिवेशवाद का अन्तका राजनीतिक जनादेश अन्तर्निहित था । इसलिए मधेसको एक मजबुत राष्ट्र और राष्ट्रियता के रुपमे विकास करना हमारा कर्तव्य है । यहि हमारा आधारभूत लक्ष्य होना चाहिए ।
मधेस के राष्ट्रिय मुक्तिमे ही मिथिला सहित अन्य भाषा-सांस्कृतिक युनिट का मुक्ति निहित है । मधेस मुक्ति और मिथिलाके मुक्ति कहि भी अन्तर्विरोध नहीं है । इसलिए अभिका मिथिला vs मधेसका कृत्रिम विवाद आधारहीन और दुर्भाग्यपुर्ण है । मिथिला एक भाषा-सांस्कृतिक आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करता है तो मधेसमे एक राष्ट्रिय भावना और राजनीतिक आकांक्षा निहित है । मिथिलाको भाषा-सांस्कृतिक भाव से तिरोहित करना या मिथिलाको एक राजनीति महत्त्वकांक्षा से पोषित करना दोनो अपने आपमे खतरनाक और अतिवादी सोच है और मधेस आन्दोलन के अन्तर्निहित भाव के खिलाप है । अत: मिथिलाको एक भाषा-सांस्कृतिक युनिट के रुपमे सम्मान और संरक्षण करते हुए मधेस राष्ट्र को सबल और एकताबद्ध करने कि प्रयास करना चाहिए ।
- Kasindra Yadav
सदस्य, TMNC
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